आंतरिक बल -752

– होनी अनहोनी

-अनहोनी यानी कि अनपेक्षित, अकस्मात् होने वाली घटना  ।

– क्या  हम अमुक घटना को रोक सकते थे?

-हम साधारण मानव  दृष्टि से बहुत से उपाय बताते है कि ऐसा करने से अमुक घटना रुक सकती थी ।

-व्यवहारिक तौर पर ऐसा कुछ नहीं होता,  घटना घटित होकर ही रहती है यानी होनी होकर ही रहती है ।

-क्या हम भूकम्प को रोक सकते थे  ?

-आखिर ये सब होता कैसे है?

– भौतिकी के अनुसार हर पदार्थ का एक प्रति पदार्थ होता है ।

-. इसी प्रकार भौतिक जगत का भी एक प्रति पदार्थ सूक्ष्म जगत है ।

-. भौतिक जगत  क़ी गति बहुत धीमी है  और  सूक्ष्म  जगत क़ी  गति बहुत तेज है ।

– सूक्ष्म जगत में  होने वाली हर घटना का बिम्ब भौतिक जगत पर पड़ता है।

-पूर्वाभास, छठी इन्द्रिय, भविष्य कथन आदि सब का आधार सूक्ष्म जगत ही है ।

-जो सूक्ष्म जगत तक अपनी पहुँच बना लेते है वो ये सब कर सकते है । हम वहां जाकर देख सकते है कि क्या होने वाला है ।

– भविष्यवाणी का आधार सूक्ष्म तक पहुँच जाना ही है ।

– पूर्वाभास हमें सूक्ष्म तरंगो से होता है।

-यदि हमारा मष्तिष्क परिष्कृत है तो हम थोड़े प्रयास से ही पूर्वाभास में निपुण हो सकते है।

-छठी इन्द्रिय या तीसरी आँख का भी यही सिद्धांत है ।

-हमारी हर चीज़ चाहे वो जीवन हो, मरण हो, स्वास्थ्य हो या खाना पीना, मोटे तौर पर सब पूर्व निर्धारित है और उसी के अनुसार हम यहाँ जीवन भोगते है 1 इस पर आगे चिंतन  करेंगे ।

– फिलहाल यह समझो क़ि सूक्ष्म जगत हमारे भविष्य की खिड़की है ।हम उसे बदल नहीं सकते केवल हम आने वाली घटना या दुर्घटना के लिए खुद को मानसिक और शारीरिक तौर पर तैयार कर सकते है।

– मृत्यु उपरांत वैसे भी  हमें सूक्ष्म लोक में ही  जाना है ।

– सूक्ष्म शक्ति शाली है और   अपार संभावनाओं का क्षेत्र है ।  समय और दूरी की सीमाओं से परे है ।  . उसकी शक्ति अपार है ।  देश, काल, परिस्थति, मौसम आदि सबसे परे है ।  अपदार्थ होने के कारण  इसके आगे कोई बाधा नहीं है ।

-ये एक रहस्य  है ताकि कोई इसका दुरूपयोग न कर सके ।

-इसे समझने के लिये हमें दृढ़ इच्छा शक्ति  क़ी  जरूरत है  ।

– जब तक  हमें किसी चीज़  के महत्व का अनुभव नहीं होता तब तक  हमारा शरीर और दिमाग उसे करने के लिए कभी तैयार नहीं होता ।

–  सूक्ष्म जगत  का विज्ञान  जीवन को नई दिशा दे सकता है ।

-ये आपकी सोच   और आपका जीवन बदल सकता है ।

– भौतिक जगत की चका चौंध हमें इस बारे में सोचने नहीं देती लेकिन अंततः हमें उसी सूक्ष्म में जाना है तो क्यों न थोड़ी पहले से तयारी कर ली जाए ।

–  हमें हर शुभ और अशुभ के लिए मानसिक और शारीरिक तौर पर तैयार रहना चाहिए ।  कष्ट उन्ही लोगों को ज्यादा होता है जो इसके लिए तैयार नहीं होते 1

– हम यही सोचते हैं  क़ि  हमारे साथ हमेशा अच्छा ही होगा  ।

-जिन लोगों के साथ अशुभ हो रहा है वो भी ऐसा ही सोचते थे ।
[11:58 AM, 1/10/2019] Milakh Raj Sandha: आन्तरिक बल 130

– मानसिक शक्ति

-स्थूल उर्जा विद्युत, चुम्बक,  गर्मी, प्रकाश के रुप में देखी जाती है ।

-इन  शक्तियों का उत्पादन कहीं और होता है।

-तेल  डाल  देने से पानी की सतह पर फैल जाता है ।

-थोड़ा  सा ज़हर सारे शरीर में फैल जाता है ।

-ऐसे ही शांति और  प्रेम के शब्द जब हम मन में रिपीट करते है तो वह शरीर की हर कोशिका तथा  ईथर द्वारा पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाते  है ।

-यह शब्द अच्छाई से टकरा टकरा कर शक्तिशाली  बन जाते है जैसे जंगल में माचिस की तीली से निकली आग प्रचंड रुप ले लेती है ।

-शांति और प्रेम दूसरे व्यक्तियों एवम प्रकृति के परमाणुओं को बदलती  है ।

-संगीत का शरीर व  मानसिक स्वस्थ्य पर प्रभाव पड़ता  है ।

–ऐसे ही शांति, प्रेम तथा  सकारात्मक संकल्प एक संगीत की तरह प्रभाव डालते है ।

-ध्वनि यंत्र इसी  नियम पर बनाये गये है ।

-अग्नि शक्ति का केन्द्र है । इस से भोजन बनता है, कारखाने चलते है, बारूद बनता है । अग्नि ही जीवन है ।

-ऐसे सकरात्मक शब्द से अनंत गर्मी पैदा होती है जो बुराइयों को , बुरी  वृत्तियों को, बुरे संस्कारो  को नष्ट कर देती है ।

-भौतिक विज्ञान बाहरी जगत को प्रभावित करता है । आध्यात्मिक विज्ञान आन्तरिक क्षेत्र को प्रभावित करता है ।

– भौतिक विज्ञान सुख  का उत्पादन करता है । आध्यात्मिक ज्ञान  अतिइन्द्रिय  सुख पैदा करता है ।

आन्तरिक बल 130

आन्तरिक बल 130

– मानसिक शक्ति

-स्थूल उर्जा विद्युत, चुम्बक,  गर्मी, प्रकाश के रुप में देखी जाती है ।

-इन  शक्तियों का उत्पादन कहीं और होता है।

-तेल  डाल  देने से पानी की सतह पर फैल जाता है ।

-थोड़ा  सा ज़हर सारे शरीर में फैल जाता है ।

-ऐसे ही शांति और  प्रेम के शब्द जब हम मन में रिपीट करते है तो वह शरीर की हर कोशिका तथा  ईथर द्वारा पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाते  है ।

-यह शब्द अच्छाई से टकरा टकरा कर शक्तिशाली  बन जाते है जैसे जंगल में माचिस की तीली से निकली आग प्रचंड रुप ले लेती है ।

-शांति और प्रेम दूसरे व्यक्तियों एवम प्रकृति के परमाणुओं को बदलती  है ।

-संगीत का शरीर व  मानसिक स्वस्थ्य पर प्रभाव पड़ता  है ।

–ऐसे ही शांति, प्रेम तथा  सकारात्मक संकल्प एक संगीत की तरह प्रभाव डालते है ।

-ध्वनि यंत्र इसी  नियम पर बनाये गये है ।

-अग्नि शक्ति का केन्द्र है । इस से भोजन बनता है, कारखाने चलते है, बारूद बनता है । अग्नि ही जीवन है ।

-ऐसे सकरात्मक शब्द से अनंत गर्मी पैदा होती है जो बुराइयों को , बुरी  वृत्तियों को, बुरे संस्कारो  को नष्ट कर देती है ।

-भौतिक विज्ञान बाहरी जगत को प्रभावित करता है । आध्यात्मिक विज्ञान आन्तरिक क्षेत्र को प्रभावित करता है ।

– भौतिक विज्ञान सुख  का उत्पादन करता है । आध्यात्मिक ज्ञान  अतिइन्द्रिय  सुख पैदा करता है ।

आंतरिक बल 730

-व्यवहार और परमात्मा – जब जब अति धर्म की ग्लानि होती है तब तब परमपिता परमात्मा अवतार लेते है ।
-धर्म ग्लानि अर्थात आध्यात्मिक जीवन अंधकारमय बन जाता है । -अनेक प्रकार के कुसंस्कारों और अंधविश्वासों से मानव ग्रस्त हो जाता है । -लोगों का मनोबल समाप्त हो जाता है । – जब राजा लोग सिंह के समान हिंसक और चौधर के लालची हो जाते है । -उनके नौकर-चाकर लोगों का खून चूसते है । रक्षक ही भक्षक बन जाते हैँ । -धर्म पंख फैलाकर कहीं उड़ जाता है । -लोग शील, संयम तथा पवित्रता को तोड़ कर तामसिक भोजन खाने लगते हैं। – शर्म और प्रतिष्ठा उठकर न जाने कहां चले जाते हैं!’ – बाहरी आडम्बरों और अर्थहीन आचारों के बोझ से लोग दब जाते हैँ । -धर्म के नाम पर ऐसी बातों के चक्कर में पड़ जाते हैँ जो अपना उद्देश्य ही भूल जाते हैँ । – सांस्कृतिक और धार्मिक संकट खड़ा हो जाता हैँ । -मनुष्य मंत्र, तंत्र जादू, टोना में फंस जाता है । -इस अंधकार को दूर करने के लिए भगवान अवतार लेते हैँ । -जब कोई विपति आती है या अनहोनी घटना घट जाती है । -कोई बच्चा बोरवेल में फंस जाता है । -जब कोई सुरंग में फंस जाता है । -जब कोई मलबे में दब जाता है । -जब कोई प्रकृतिक आपदा बाढ, तूफान या भूकम्प आता है तो सभी लोग भगवान को याद करते हैँ । -जब कोई व्यक्ति क्रोधी हो जाता है, लड़ाई झगड़े व मारपीट पर उतारू हो जाता है तो हम प्रार्थना करने लगते हैँ कि भगवान उसे सदबुद्वि दो । -जब कोई अच्छा कार्य शुरू करते हैँ तब भगवान को याद करते हैँ । -जब किसी की मृत्यु हो जाए तब भी भगवान को याद करते हैँ । -जीवन में दिन प्रतिदिन आने वाले विघ्नों व रोगो से छुटकारा पाने के लिये भी भगवान को याद करते है । -प्रत्येक मनुष्य जाने अनजाने किसी न किसी समय किसी न किसी रूप में भगवान को याद करता हैँ । -अगर भगवान को व्यवहार में शामिल कर ले तो मनुष्य जीवन में दुख रोग नहीं रहेगा ।

आंतरिक बल 729

-बालको की उन्नति और व्यवहार

-आज का बालक ही अगली पीढ़ी का स्वामी है ।

-आज की बालिका अगली पीढ़ी की मां बनेगी ।

-बच्चे भगवान की नई प्लेनिंग है ।

– इसलिए बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार करना है ताकि उन में दिव्य गुणो का विकास हो ।

-बच्चे जैसा देखते, सुनते और पुस्तके पढ़ते है वैसा ही बनते है ।

-घर, विद्यालय और समाज बच्चों को बनाते और बिगड़ते है ।

-जिस घर में हर समय लड़ाई झगड़ा, गाली गलौच, ईर्ष्या द्वेष लगे रहते है ।

-जिस घर में बीड़ी सिगरेट, शराब अन्य मादक पदार्थो का सेवन होता है ।

-जिस घर में अनुशासनहीनता, चरित्रहीनता , झूठ , हिंसा और गाली गलौच का तांडव है ।

-जिस घर में क्षमा, संतोष और प्यार का अभाव है ।

-उस घर में बच्चों का भविष्य उज्जवल होने की सम्भावना बहुत कम होती है ।

-घर के छोटे बड़े लोगो के व्यवहार का असर बच्चों पर होता है ।

-ऐसे ही स्कूल, कॉलेज या विश्व विद्यालयो में भौतिक शिक्षा और धन कमाने की शिक्षा तो दी जाती है परन्तु चऱित्र को श्रेष्ट बनाने, दिव्य गुणो को जीवन में कैसे लायें तथा श्रेष्ट मां , बाप और नागरिक कैसे बने और श्रेष्ट व्यवहार कैसे करें इसकी शिक्षा नहीं दी जाती ।

-समाज में व्याप्त अच्छाई और बुराई का असर भी बच्चों पर पड़ता है । –

-समाज में व्याप्त अश्लील सिनेमा, अश्लील साहित्य, सोशल मीडिया में व्याप्त अश्लीलता और क्रूरता बच्चों के दिमाग को दूषित कर रहे है ।

-वर्तमान युग में मनुष्य सिर्फ पैसा कमाने के लिये निकृष्ट कृत्य करने से नहीं चूकता जिस से समाज में अत्याचार और अशांति फैल रही है ।

-ऐसी परिस्थितयो से बच्चों को बचाना हर मां बाप का कर्तव्य है ।

-इसके लिये क्या करें ?

-परिवार के सभी सदस्यो को और खासतौर पर मां बाप को 5 मिनट ब्रह्मा कुमरीज आश्रम या जो भी आप के नजदीक धार्मिक स्थान है वहां जरूर जाना चाहिए ।

-प्रत्येक व्यक्ति को कोई साकारात्मक बुक एक पेज हर रोज पढ़ना या सुनना चाहिए ।

-चाहे कैसा भी परिवार हो उसमे परिवर्तन आएगा ।

– प्रत्येक माता अपने बच्चों को कल्पना में देखे और बीच में शिव बाबा के बिंदु रूप या इष्ट को सामने देखते हुए, भगवान आप शांति और प्यार के सागर है इस का सिमरन करती रहे तो किसी भी वातावरण का असर बच्चों पर नहीं पड़ेगा और बच्चे अपने जीवन में महान बनेगे ।

-यह अभ्यास एक घंटा कम से कम जरूर करना है और तब तक करना है जब तक हम जीवित है ।

-इस अभ्यास से बहिनो की कोई भी तन, मन, धन और व्यवहार की समस्या भी खत्म होगी और बच्चे भी चरित्रवान और महान बनेगे ।

-अगर कल्पना में भगवान व बच्चों को नहीं देख सकते तो भगवान और बच्चों का फोटॊ सामने रख ले और भगवान के फोटो को कहें आप प्यार के सागर है ।

-ईथर के माध्यम से आप का मानसिक व्यवहार आप के बच्चों और आप स्वंय को बदल देगा ।

आंतरिक बल 728

-बच्चों के प्रति व्यवहार में आत्म गौरव का भाव रखें ।

-हमें पता होना चाहिये कि बच्चे में खूबियों कैसे विकसित की जाती हैँ

-बच्चे में आत्म गौरव तब पैदा होता है जब हम बच्चे क़ी बात को सुनते हैँ ।

-आज अभिभावक जरूरत से ज़्यादा व्यस्त हैँ ।

-अधिकतर पिता अपने बच्चों को सार्थक चर्चा के लिये प्रतिदिन मात्र 40 सेकेंड देते हैँ ।

-यदि आज हम उनके के लिये समय नहीं रखेगे तो एक दिन जब हम सुनना चाहेगे तो शायद हमारे बच्चों के पास हम से बात करने का वक्त भी नहीं होगा ।

-बच्चों को केवल सुना ही नहीं बल्कि प्यार से निहारा भी जाना चाहिये ।

-दूसरा बच्चों के प्रति हमेशा आदर का रवेया रखना चाहिये ।

-आदर अर्थात उसके सामर्थ्य में यकीन रखना ।

-आदर अर्थात अपने बच्चे में सकारत्मक मानसिक दृष्टिकोण का विकास करना है ।

-बच्चे जिस चीज के बारे सर्वाधिक सोचते हैँ उस जैसे हो जाते हैँ ।

– नकारात्मक चिंतन व नकारात्मक टिप्णियों से बच्चा बीमार हो जाता हैँ और अवसाद में चला जाता हैँ ।

-तुम चाहे कितनी मेहनत कर लो सफल होना मुश्किल है । यह नकारात्मक टिपणी है ।

-सकारात्मक टिप्णियों से बच्चा तीव्रता से जीवन में आगे बढ़ता है ।

-सफलता तुम्हारा जन्म सिद्व अधिकार है । यह साकारात्मक टिपणी है ।

-किसी बच्चे क़ी सराहना करना सब से शक्तिशाली टिपणी है ।

-शाबाश कहना सबसे बेस्ट सराहना है ।

-अपने बच्चों क़ी हर रोज किसी ना किसी बात पर सराहना जरूर करनी चाहिये । ऐसा करने से बच्चा साकारात्मक कर्म करेगा और तुम्हरे लिये समस्या नहीं रहेगी ।

-प्रोत्साहन से भी बच्चे में आत्म गौरव बढता है ।

-बच्चे को कहें आपका समस्या हल करने का तरीका अच्छा लगा ।

-तुम अपने गुस्से पर काबू पाना सीख रहें हो ।

-कुश्ती में प्रतिस्पर्धी को चकमा देना सीख लिया है ।

-यह गणित मुश्किल था मुझे खुशी है कि तुम ने कई सवाल हल कर लिये ।

-आधा होम वर्क करने पर ही मां कहे तुम बुद्विमान हो तो बच्चा सोचेगा -यदि यह बुद्विवान का पैमाना है तो मै इस से कम मेहनत करके भी काम चला सकता हूं । ये प्रोत्साहन नहीं है ।

-होम वर्क में बच्चे से पूछे गये हर सवाल का जवाब देना भी गलत फहमी है कि आप बच्चे को प्रोत्साहन दे रहे
हैँ ।

-प्रोत्साहन अर्थात विपरीत परिस्थितयो से निपटने के लिये उसमे विश्वास पैदा करना ।

-बच्चे द्वारा नई चुनौतिया का सामना करते समय उसके प्रति समर्थन और विश्वास दर्शाना प्रोत्साहन है ।

-बच्चा असफल हो जाए तो उसे समर्थन देवे कि वह महत्वपूर्ण है उसका प्रदर्शन नहीं ।

-तुम्हारे पास काबलियत है इसे जारी रखो ।

-अगर आप मुख से बच्चे के लिये अच्छा नहीं बोल सकते है तो चुप रहो और बिंदु परमात्मा को देखतें हुए मन में बच्चे के प्रति कोई ना कोई श्रेष्ट भाव रखें । आप के श्रेष्ट भाव बच्चे का आत्म गौरव बढ़ाएंगे ।

-यही नियम राजयोग के विद्यार्थिओं पर भी लागू होता है ।

आंतरिक बल 727

-बच्चों के प्रति व्यवहार में आदर का भाव रखें

-आप के परिवार का भविष्य क्या होगा तथा देश का भविष्य क्या होगा ?

-ये दो सवाल सभी के मस्तिष्क में रहते है ।

– जितना आप का अपने बच्चों के प्रति सम्मान का भाव होगा और व्यवहार होगा उतना ही आप के परिवार का भविष्य महान होगा ।

-जितना विश्व के बच्चों के प्रति आप के मन में सम्मान का भाव होगा और व्यवहार होगा उतना ही विश्व श्रेष्ट होगा ।

-बच्चे विश्व की इकाई है । इसलिए इकाई जब श्रेष्ट होगी तो बाकी सब ठीक ही होगा ।

-बीज ठीक है तो पेड़ भी बहुत अच्छ फले फूलेगा ।

-विश्व के प्रत्येक बच्चे की कुछ मूल आवश्कताएं होती है जो कभी नहीं बदलती ।

-प्रत्येक बच्चा अच्छा महसूस करना चाहता है ।

– अगर बच्चा अपने बारे अच्छा महसूस नहीं करता तो लोगो की छोटी छोटी बाते भी उन्हे अच्छी नहीं लगेगी ।

-लोगो की छोटी छोटी टिप्णियों को सजा के रूप में लेगा और वह गुस्से में जवाब दें सकता है ।

-अच्छा महसूस करने को आत्म स्तुति, आत्म प्रेम’, आत्म उल्लास, आत्म गौरव या कोई अन्य नाम दें सकते है ।

-यह अच्छेपन का भाव बच्चे के विकास और व्यक्तित्व पर गंभीर प्रभाव डालता है ।

-बच्चों में यह भाव आसानी से विकसित नहीं होता

-बच्चों के प्रदर्शन और जीवन में सुधार के लिये अभिभावक अक्सर बोलते रहते है ।

-तुम किसी काम के नहीं हो ।

-तुम्हे बनाते वक्त भगवान तुम्हे दिमाग देना चूक गया था ।

-हाकी के बारे भूल जाओ वह तुम्हारे बस का खेल नहीं ।

-तुम्हारा कुत्ता तुम्हारे से ज्यादा समझदार है ।

-तुम बहुत शैतान हो ।

-मां या बाप और स्कूल में टीचर्स के इन कथनों को बच्चा सच मान लेता है और वह जीवन में कुछ नहीं कर सकता ।

-मां बाप बच्चों से प्यार तो बहुत करते है परन्तु अनजाने में उनके प्रति बोलते व सोचते उल्टा है ।

-आप बच्चे को जैसा कहेगे वह वैसा ही हो जाएगा ।

-बच्चा वैसा ही हो जाता है जैसे उसे दर्शाया जाता है ।

-यदि बच्चे से कहा जाए तुम बुरे बच्चे हो तो वह इस पर विश्वास करके वैसा ही करने लगेगा ।

-यदि उसे कहा जाए तुम तेज दिमाग और समस्या सुलझाने की क्षमता रखते हो तो वह खुद को समस्या सुलझने वाला मान कर अपने मस्तिष्क का रचनात्मक उपयोग करने लगेगा ।

-शिव बाबा या इष्ट को याद करते हुए मन में कहते रहा करो मेरे बच्चे जैसे विश्व के सभी बच्चे बुद्विवान है । इस से आप का बच्चा तीव्रता से बुद्विवान बनेगा क्योकि दूसरे बच्चों की दुआए भी मिलेगी । तथा आप की मानसिक तरंगे विश्व के ब्क्चौ को भी प्रेरणा देंगे ।

आंतरिक बल 726

-बच्चे और व्यवहार

-बच्चे एक बेल के पौधे के समान है । बेल की जितनी देखभाल की जाती है वह उतनी ही फलती फूलती है और उसी दिशा में बढ़ती जाती है जिस दिशा में उसे बढ़ाना चाहते है ।

-धन दौलत व अन्य साधन विश्व के सभी लोगो के पास भिन्न भिन्न है । इसलिए बच्चों को धन आदि की सहायता हर मां बाप अपनी यथा शक्ति अनुसार दें सकते है ।

-भगवान ने एक शक्ति सभी मनुष्यो को बराबर दें रखी है । वह शक्ति है मन की शक्ति । मन के द्वारा हम जो चाहते है वैसा ही बच्चे को बना सकते है ।

-12 वर्ष तक बच्चा मां बाप के मन की बात सुनता है । आप जो सोचते है बच्चा वैसा ही करता है ।

-अगर आप चाहते है क़ि आप का बच्चा डॉक्टर बने तो आप मन में उसके प्रति सोचते रहो आप डॉक्टर बनेगे । आप को मेडिकल के सारे विषय अच्छी तरह समझ आते है ।

-आप चाहते है कि आप का बच्चा वकील बने, ऑफीसर बने, बिजनेसमेन बने, साधक बने, समाज सेवक बने या राज नेता बने ।

-मां बाप को और खासतौर पर मां को बच्चे के प्रति हर रोज सोचना है कि मेरा बच्चा ऐसा बनेगा । मुख से नहीं सिर्फ मन में बोलना है ।

-अगर आप मुख से बोलते है क़ि मेरा बच्चा ऐसा बनेगा तो दूसरे लोग बच्चे के प्रति उल्टा सोचने लगते है जिस से हमारी मानसिक एनेर्जी कटने लगती है ।

-कई बार बच्चा हमारे बोल को पकड़ लेता है कि मै ऐसा बनूंगा क्योकि मां बाप कह रहें है और वह मेहनत नहीं करता ।

-इसलिए मुंह से बहुत कम मन से ज्यादा बोलना चाहिये ।

-मन के द्वारा आप का व्यवहार बच्चे को दिशा देता है ।

-हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसका बच्चा सबके सामने अदब से पेश आए। आप मन में बच्चे के प्रति सोचते रहो आप सब से तहजीब से बोलते है । उस में यह गुण आ जाएगा ।

-किसी मेहमान के सामने बच्चा अगर कोई गलती कर देता है या फिर कोई ऐसी बात कह देता है जो आपको पसंद नहीं है तो डांटने की गलती न करें। मुख से या मन से उसे कहो ये बात ऐसे कहते है या यह काम ऐसे करते है । वह धीरे धीरे ऐसे ही बेस्ट व्यवहार करने लगेगा ।

– अपने मन में बिंदु रूप शिव बाबा या ब्रह्मा बाबा या अपने इष्ट को देखते हुए कहे परमात्मा आप ज्ञान के सागर है । ऐसा अभ्यास करने से भगवान की शक्ति से बच्चा अपने विषयो में ज्ञान का स्वरूप बन जाएगा और अपने क्षेत्र में तीव्र गति से बढ़ेगा ।

आंतरिक बल 725

-ऑफीस और व्यवहार

-आफिस में हर बात पर उलझना ठीक नहीं ।

-कुछ बाते आप को बुरी लग सकती है ।

-उन्हे लेकर बेवजह लड़े झगड़े नहीं ।

-कुछ बातो को एक कान से सुन दूसरे से बाहर निकाल दें ।

-अपना व्यवहार सीमित और मर्यादित रखें ।

-सहकर्मियों पर व्यंग्य न कसे । भद्दे मजाक न करें ।

-अपने बॉस व सहकर्मियों की बुराई न करें ।

-हमेशा याद रखें कुछ कमिया आप में भी होती है ।

-विवादो से दूर रहे और किसी के बारे कुछ भी कहने से पहले ये सोच ले क़ि आप की कहीं बात को बढ़ा चढ़ा कर भी बताया जा सकता है ।

-कई बार विपरीत लिंग के लोग ऐसा वैसा कमेंट कर देते है । इन मामलो को बेवजह तूल न दें और शांति से बात करके तुरंत खत्म करें ।

-कुछ लोग आगे बढ़ने के लिये बास से दूसरे सहकर्मियों की झूठी चुगली करते है । ऐसा करने वालो की कोई कदर नहीं करता और फिर एक दिन अन्य कर्मचारी भी मिल कर उसके खिलाफ साजिश रचते है ।

-बेवजह दूसरो की टांग खीचने वाला एक दिन खुद गिरता है ।

-सिर्फ अपने काम से काम रखें, कौन क्या कर रहा है, इस से आप का कोई मतलब नहीं ।

-जब तक आप से राय न मांगी जाए, अपनी तरफ से कोई राय मत दो और न ही बेवजह किसी के काम में टांग आड़ेय ।

-जानबूझ कर कोई गलत कार्य नहीं करना । अनजाने में कोई भूल हो जाती है तो वह माफ कर दी जाएगी ।

-कई बार दो बॉस के बीच फंस जाते है ।

-आप के सामने छोटा बास बड़े बास की निंदा करेगा और बड़ा बॉस छोटे की निंदा करेगा । आप ने उनकी बात एक दूसरे को नहीं बतानी । अगर ऐसा करेगे तो आप मुसीबत में फंस सकते है ।

-किसी कारण से बास या अन्य कर्मचारी नाराज हो जाते है ।

-ऐसी दशा में कल्पना में कर्मचारी व बॉस को देखें और बीच में शिव बाबा या इष्ट को देखते हुए शिव बाबा के गुण गाते रहें आप प्यार के सागर है ।

-आप से ऐसी तरंगे निकलेगी जिस से बॉस की नाराजगी दूर हो जाएगी ।

आंतरिक बल -724

-बास द्वारा इमोशनल अत्याचार और व्यवहार

-जब बॉस सदा ही नीचा दिखाने का प्रयास करता है और उस से परेशान हो कर आप नौकरी छोड़ देते है तो यह इमोशनल अत्याचार है ।

– ये परिस्थिति तब बनती है जब हम बॉस के साथ किसी विषय पर ऊंची आवाज में बात करते है तो वह चिढ़ जाता है, वह समझता है क़ि आप ने उसकी बेजती की है । इसलिए वह अत्याचार पर उतर आता है ।

-ऐसी परिस्थिति का उत्तम इलाज है आप वहां से बदली करवा ले ।

-अगर बदली नहीं करवा सकते है या ऑफीसर आप की बदली नहीं होने देता है तो आप को वहीँ डटे रहना है और अपने मुंह पर ताला लगा लेना है ।

-दूसरो के सामने बास की निंदा नहीं करनी । हो सकता है वह सक्षम नहीं है । उसे कुछ भी नहीं आता है । फिर भी वह पोस्ट पर है । हमें कुर्सी को सलाम करनी है । अगर उसकी दूसरे साथियो के आगे निंदा करेगे तो वह उसे बढ़ा कर आप की बात बताएंगे । जिस से वह और चिढ जाएगा ।

-उसके जो नजदीकी लोग है उनके आगे बास की नकली महिमा करनी है । इस बास जैसा तो कोई काबिल है ही नहीं । मुझे
गर्व है क़ि हम इसके नीचे कार्य करते है ।

-आप की यह बात वह व्यक्ति बॉस तक पहुचा देगा और उसका अटीच्युड आप के प्रति बदल जाएगा ।

-बास कोई भी काम आप को करने को सौंपता है और वह काम आप की सीट का है या नहीं है आप ने यस कहना है ।

-अगर आप को कोई समस्या है या यह काम किसी और का है तो थोड़ी देर बाद जा कर बॉस को इस काम के बारे बताए । वह जिसका काम है उसी को सौंप देगा । अगर फिर भी वह हठ करता है तो वह कार्य कर दो चाहे आप की सीट का न भी हो ।

– कई बार आप से ऐसे कार्य करने के लिये जबानी आदेश देता है जो नियमो के विपरीत होते है तब भी आप ने हां करना है । तथा तुरंत एक नोट बनाओ क़ि आप ने अमुक काम करने को कहा है परन्तु यह नियमो के विपरीत है, अगर फिर भी आप यह करवाना चाहते है तो इसे लिखित में मंजूर कर दें । वह अपने आप पीछे हट जाएगा । अगर वह लिखित में मंजूरी दें देता है तब वह कार्य कर दो । उसके लिये वह खुद जुम्मेवार होगा ।

– अगर जबानी आदेश को लिखित में लेने का समय नहीं है तो तो पहले आप उसे कर दो और कार्य पूरा होने के बाद तुरंत लिखित में ले लो और उस में यह सब वर्णन करना है क़ि यह नियमो के विपरीत है ।

-बास कोई भी गलत कार्य करने को कहता है तब एक बार उस को जरूर बताना है क़ि यह नियम अनुसार नहीं है । अगर आप नहीं बताएंगे तो वह आप को दोषी बना देगा क़ि आप ने मिस गाइड किया है ।

-कई बार आप के ड्राफ्ट को बास बदल देता है और ऐसा आदेश कर देता है जो नियम के विरुद्ध है । तब आप उस ड्राफ्ट की कॉपी सम्भाल कर रखें उसे नष्ट न करें । समय पर आप उसे प्रस्तुत कर सकते है । दोषी बॉस ही बनेगा । अगर आप प्रूफ नहीं दिखा पाए तो दोष आप का हो जाएगा ।

-आप अपनी सीट के काम पर केंद्रित रखें । दूसरे क्या कर रहे उसके बारे कभी भी बॉस को शिकायत न करें । यह सीनियर्स का काम है । वह अपने आप देखेगे ।

आंतरिक बल -723

-इमोशनल अत्याचार और व्यवहार

-किसी व्यक्ति अथवा प्राणी पर निर्दयतापूर्वक किए गये उत्पीड़न के व्यवहार को अत्याचार कहते हैँ ।

– संस्था में या घर के लोग कहे क़ि आप कोई भी काम सही नहीं करते हो, ऐसा लगता है कि तुम्हारे पास दिमाग है ही नहीं ।

-तुम्हारा मलिक अगर कहता है क़ि आप को केवल काम बिगाड़ना आता है और कुछ आता-जाता नहीं है ।

-तुमहारा जीवन साथी कहता है आप को जीने का तरीका भी नहीं आता।

-जिस से आप प्यार करते हैँ अगर वह कुछ ऐसी बातें कहता है जिनको सुनकर आप मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाते हैं तो ऐसे व्यवहार को इमोशनल एब्यूज या भावनात्मक र्दुव्यवहार कहते हैं।

-इमोशनल एब्यूज अर्थात भावनात्मक र्दुव्यवहार किसी को मानसिक रूप से पीड़ा पहुंचाता है।

-यह किसी भी व्यक्ति को अंदर तक तोड़ देता है।

-शारीरिक घाव तो समय के साथ हल्के हो जाते हैं। लेकिन भावनात्मक अत्याचार अधिक गहरा प्रभाव छोड़ता है। यह किसी व्यक्ति को मानसिक तौर पर अवसाद की अवस्था में तो लाता ही है, साथ ही उसके विश्वास को चकनाचूर भी कर देता है।

– अकसर अनजाने में ही लोग एक दूसरे से भावनात्मक अत्याचार कर रहे है ।

-लगातार भावनात्मक र्दुव्यवहार से व्यक्ति की सोच-समझ, आत्मसम्मान, आत्मज्ञान पर असर पड़ता है।

-हर बात पर सवाल खड़ा करना, हर बात को झूठा साबित करना,ताने मारना, दूसरे के व्यक्तित्व को समाप्त करने की कोशिश करना, अपनी बातों को हावी कर देने का प्रभाव व्यक्ति की सोच पर पड़ता है।

-वह हमेशा हीन-भावना में रहता है और खुद को दूसरों से कमतर आंकने लगता है। किसी भी कार्य को करते वक्त वह अमूमन असमंजस की स्थिति में रहता है।

– पति ऑफिस से लौटने पर कहते हैं कि तुम्हारे पास काम ही क्या है, सिर्फ घर में बैठी रहती हो। बस केवल खाना बना लेती हो।

– सास भी तपाक से बोलेगी इसे कुछ काम तो करना आता नहीं है। अपने पति द्वारा इस तरह की बातें मानसिक रूप से प्रताडि़त करती है।

-जहां कहीं भी रहो प्राय बड़े छोटों को ऐसे कहते रहते है । जिस से छोटों का मनोबल टूट जाता है । मन में दुखी रहते है ।

-यदि कोई आपको दबाने की कोशिश करता है, तो ऐसी स्थिति में स्वयं को कमजोर मत समझें। अपने पर भरोसा रखें।

– प्यार और विश्वास से ऐसा जवाब दें कि उसे लगे कि वाकई में बहुत लायक है ।

-‘अपनी कम्यूनिकेशन स्किल बढ़ाए आपको अपनी बातों को आत्मविश्वास के साथ सटीक शब्दों में प्रस्तुत करना आना चाहिये ।

-किसी को हावी न होने दें। किसी भी व्यक्ति के सामने इतना ही झुकें जितनी जरू रत है।

-अपनी शिक्षा का स्तर बढ़ाए । जितनी ज़्यादा योग्यता होगी उतना लोग सम्मान करेगे ।

-जिस से भी आप मिलते है उसे मन में कहते रहा करो आप श्रेष्ट है, महान है । यही तो हर व्यक्ति सुनना चाहता है । जब आप ऐसा नहीं करेगे तो वह इमोशनल अत्याचार करेगे ही ।

-शिव बाबा या इष्ट को याद करते रहने से आप से ऐसी तरंगे निकलती है जो सभी लोग आप से श्रेष्ट व्यवहार करेगे ।

-सारा संसार भगवान की आज्ञा से चलता है । उसका कहना सब मानते है । इसलिए उठते बैठते उसे याद करते रहना . चाहिये ।

BK Milakh Raj Sandha 9896348516