आंतरिक बल -722

-अत्याचार और व्यवहार

-जब कोई अत्याचार करता है, जुल्म करता है, अपनी शक्तियो का दरुपयोग करता है, पैसा कमाने के लिये गलत रास्ते अपनाते हैँ तो जो व्यक्ति इस से प्राभावित होते हैँ .वह नाराज हो जाते हैँ और मन ही मन बद दुआए देते हैँ ।

-लोगो की इस नाराजगी के कारण व्यक्ति का मन कमजोर हो जाता है जिस से वह छोटी छोटी घटनाओ पर आवेश में आ जाएगा, सब की इन्सल्ट करता है, मन में जलता रहेगा, गुस्से का उबाल मन में बना रहेगा ।

-ये आवेश ज्ञान’ , विचार, तथा विवेक को नष्ट कर देगा ।

-वह न सोचने लायक बाते सोचने लगता है ।

– जो कार्य बुरे लगते थे या समझता था, अत्याचारी वही बुरे कार्य करने लगता हैँ ।

-अगर कोई विपति आने पर या किसी से झगड़ा होने पर, चिंता, शोक निराशा में डूब जाता है, भय हावी हो जाता है, घबराहट बढ़ जाती है । सब कुछ है परन्तु मानसिक शांति नहीं हैँ । ये सब लक्षण बताते हैँ क़ि लोगो की बद दुआ के कारण मन बहुत कमजोर हो गया है ।

-दूसरो की नाराजगी आंतरिक शांति को नष्ट कर देती है ।

-शांति की कमी के कारण मन को किसी काम में एकाग्र नहीं कर पाते ।

-उनके लिये बड़ी बड़ी सफलता असम्भव है । ऐसा मानसिक असंतुलन उसे पतन की ओर ले जाता हैँ ।

-उच्चा उठने के लिये जिस बल की आवश्कता होती है वह बल एकत्रित नहीं हो पाता ।

– जिन लोगो से परेशानी हैँ उनके प्रति दया भाव रखना चाहिये ।

-दया के भाव से महात्मा बुद्ध ने अंगुलिमाल डाकू को बदल दिया था

-भगवान आप दया के सागर हैँ । इस गुण से भगवान को याद करने से कोई कितना भी अत्याचारी हो वह बदल जाएगा ।

-दया के भाव से बहुत शक्तिशाली मानसिक बल मन से निकलता है जो किसी को भी बदल सकता है ।

0 replies

Leave a Reply

Want to join the discussion?
Feel free to contribute!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *