आन्तरिक बल 130

आन्तरिक बल 130

– मानसिक शक्ति

-स्थूल उर्जा विद्युत, चुम्बक,  गर्मी, प्रकाश के रुप में देखी जाती है ।

-इन  शक्तियों का उत्पादन कहीं और होता है।

-तेल  डाल  देने से पानी की सतह पर फैल जाता है ।

-थोड़ा  सा ज़हर सारे शरीर में फैल जाता है ।

-ऐसे ही शांति और  प्रेम के शब्द जब हम मन में रिपीट करते है तो वह शरीर की हर कोशिका तथा  ईथर द्वारा पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाते  है ।

-यह शब्द अच्छाई से टकरा टकरा कर शक्तिशाली  बन जाते है जैसे जंगल में माचिस की तीली से निकली आग प्रचंड रुप ले लेती है ।

-शांति और प्रेम दूसरे व्यक्तियों एवम प्रकृति के परमाणुओं को बदलती  है ।

-संगीत का शरीर व  मानसिक स्वस्थ्य पर प्रभाव पड़ता  है ।

–ऐसे ही शांति, प्रेम तथा  सकारात्मक संकल्प एक संगीत की तरह प्रभाव डालते है ।

-ध्वनि यंत्र इसी  नियम पर बनाये गये है ।

-अग्नि शक्ति का केन्द्र है । इस से भोजन बनता है, कारखाने चलते है, बारूद बनता है । अग्नि ही जीवन है ।

-ऐसे सकरात्मक शब्द से अनंत गर्मी पैदा होती है जो बुराइयों को , बुरी  वृत्तियों को, बुरे संस्कारो  को नष्ट कर देती है ।

-भौतिक विज्ञान बाहरी जगत को प्रभावित करता है । आध्यात्मिक विज्ञान आन्तरिक क्षेत्र को प्रभावित करता है ।

– भौतिक विज्ञान सुख  का उत्पादन करता है । आध्यात्मिक ज्ञान  अतिइन्द्रिय  सुख पैदा करता है ।

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